Thursday, October 24, 2013

Mannadey-----A music LEGEND

http://www.bbc.co.uk/hindi/multimedia/2012/05/120501_manna_dey_audio_dk.shtml http://www.bbc.co.uk/hindi/entertainment/2013/10/131024_manna_dey_dp.shtml http://www.bbc.co.uk/hindi/entertainment/2013/10/131024_manna_dey_interview_dil.shtml http://www.thehindu.com/news/national/manna-in-heaven/article5268493.ece?homepage=true&ref=slideshow

Friday, September 6, 2013

उदास न हो


उदास न हो (साहिर लुधियानवी) मेरे नदीम मेरे हमसफर, उदास न हो। कठिन सही तेरी मंज़िल, मगर उदास न हो। कदम कदम पे चट्टानें खड़ी रहें, लेकिन जो चल निकलते हैं दरिया तो फिर नहीं रुकते। हवाएँ कितना भी टकराएँ आंधियाँ बनकर, मगर घटाओं के परछम कभी नहीं झुकते। मेरे नदीम मेरे हमसफर ..... हर एक तलाश के रास्ते में मुश्किलें हैं, मगर हर एक तलाश मुरादों के रंग लाती है। हज़ारों चांद सितारों का खून होता है तब एक सुबह फिज़ाओं पे मुस्कुराती है। मेरे नदीम मेरे हमसफर .... जो अपने खून को पानी बना नहीं सकते वो ज़िन्दगी में नया रंग ला नहीं सकते। जो रास्ते के अन्धेरों से हार जाते हैं वो मंज़िलों के उजालों को पा नहीं सकते। मेरे नदीम मेरे हमसफर, उदास न हो। कठिन सही तेरी मंज़िल, मगर उदास न हो।

Monday, January 14, 2013

अभी न जाओ प्राण !(नीरज)

अभी न जाओ प्राण ! प्राण में प्यास शेष है,प्यास शेष है,अभी बरुनियों के कुञ्जों मैं छितरी छाया,पलक-पात पर थिरक रही रजनी की माया,श्यामल यमुना सी पुतली के कालीदह में,अभी रहा फुफकार नाग बौखल बौराया,अभी प्राण-बंसीबट में बज रही बंसुरिया,अधरों के तट पर चुम्बन का रास शेष है।अभी न जाओ प्राण ! प्राण में प्यास शेष है।प्यास शेष है।अभी स्पर्श से सेज सिहर उठती है, क्षण-क्षण,गल-माला के फूल-फूल में पुलकित कम्पन,खिसक-खिसक जाता उरोज से अभी लाज-पट,अंग-अंग में अभी अनंग-तरंगित-कर्षण,केलि-भवन के तरुण दीप की रूप-शिखा पर,अभी शलभ के जलने का उल्लास शेष है।अभी न जाओ प्राण! प्राण में प्यास शेष है,प्यास शेष है।अगरु-गंध में मत्त कक्ष का कोना-कोना,सजग द्वार पर निशि-प्रहरी सुकुमार सलोना,अभी खोलने से कुनमुन करते गृह के पटदेखो साबित अभी विरह का चन्द्र -खिलौना,रजत चांदनी के खुमार में अंकित अंजित-आँगन की आँखों में नीलाकाश शेष है।अभी न जाओ प्राण! प्राण में प्यास शेष है,प्यास शेष है।अभी लहर तट के आलिंगन में है सोई,अलिनी नील कमल के गन्ध गर्भ में खोई,पवन पेड़ की बाँहों पर मूर्छित सा गुमसुम,अभी तारकों से मदिरा ढुलकाता कोई,एक नशा-सा व्याप्त सकल भू के कण-कण पर,अभी सृष्टि में एक अतृप्ति-विलास शेष है।अभी न जाओ प्राण! प्राण में प्यास शेष है,प्यास शेष है।अभी मृत्यु-सी शांति पड़े सूने पथ सारे,अभी न उषा ने खोले प्राची के द्वारे,अभी मौन तरु-नीड़, सुप्त पनघट, नौकातट,अभी चांदनी के न जगे सपने निंदियारे,अभी दूर है प्रात, रात के प्रणय-पत्र में-बहुत सुनाने सुनने को इतिहास शेष है।अभी न जाओ प्राण! प्राण में प्यास शेष है,प्यास शेष है॥